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"काटने से पर / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

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04:47, 11 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

काटने से पर परिन्दों के समस्या हल न हो
देख तो इनके परों में फिर नया जंगल न हो

मैं पहाड़ो तक गया था दोस्तो ये देखने
घूमता प्यासा वहाँ मेरी तरह बादल न हो

तू जिसे आँसू समझकर हँस रहा है व्यर्थ में
देख तो उसके ज़िगर में जज़्ब गंगाजल न को

उसकी मुठ्ठी बन्द है अहसास पत्थर का न कर
क्या खबर उसमें कहीं इक छटपटाता पल न हो

हादसा जब हो चुका तो लाज़मी थीं चुप्पियाँ
क्योंकि शासन चाहता था शहर में हलचल न हो