भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जानत नहिं लगि मैं / बिहारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKCatKavitt}}
[[Category: कवित्त]]
+
 
<poem>
 
<poem>
 
जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै
 
जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै

10:58, 16 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै
तुम तौ बधात ही तै वहै नाँध नाध्यौ है।
लीजिये न छेहु निरगुन सौं न होइ नेहु
परबस देहु गेहु ये ही सुख साँध्यौ है।
गोकुल के लोग पैं गुपाल न बिसार्यौ जाइ
रावरे कहे तौ क्यौं हूँ जोगो काँध काँध्यौ है।
कीजिए न रारि ऊधौ देखिये विचारि काहु
हीरा छोड़ि डारि कै कसीरा गाँठि बाँध्यौ है।।