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"किसी ने दरवाज़ा खटखटाया / मुकेश जैन" के अवतरणों में अंतर

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19:26, 26 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

किसी ने दरवाज़ा खटखटाया
फिर खटखटाया
नाम लेकर पुकारा मेरा
मैं सुनता रहा आवाज़
लेकिन उठा नहीं
 
मुझे आश्‍चर्य हुआ
कोई मुझे जानता है
मेरे नाम से
 
मैंने आइने में
अपने चेहरे की
एक एक रेखा
ध्यान से देखी ,
मैं कुछ हूँ
यह सोचता रहा मैं
शायद , पहली बार होंठ खिल उठे थे
 
मेरा सारा ज़िस्म
जो कभी
सिकुड़कर
नम्बरों में बदल गया था
आज़ दिखा है
समूचा का समूचा।


रचनाकाल : 27 मार्च 1989