"असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 3" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ||
+ | |||
+ | [[चित्र:Veena_instrument.gif]] | ||
मैं सुनूँ,<br> | मैं सुनूँ,<br> | ||
पंक्ति 34: | पंक्ति 36: | ||
गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।<br> | गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।<br> | ||
कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :<br> | कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :<br> | ||
− | ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते<br> | + | ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते<br><br> |
+ | |||
+ | [[चित्र:Veena_instrument.gif]]<br><br> | ||
+ | |||
मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।<br> | मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।<br> | ||
भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।<br> | भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।<br> | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 48: | ||
झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में<br> | झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में<br> | ||
संसृति की साँय-साँय।<br><br> | संसृति की साँय-साँय।<br><br> | ||
− | |||
− | |||
"हाँ मुझे स्मरण है :<br> | "हाँ मुझे स्मरण है :<br> | ||
पंक्ति 72: | पंक्ति 75: | ||
पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।<br> | पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।<br> | ||
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।<br><br> | अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।<br><br> | ||
+ | |||
+ | [[चित्र:Veena_instrument.gif]]<br><br> |
02:30, 28 दिसम्बर 2006 का अवतरण
रचनाकार: अज्ञेय
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
मैं सुनूँ,
गुनूँ,
विस्मय से भर आँकू
तेरे अनुभव का एक-एक अन्त:स्वर
तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय--
गा तू :
तेरी लय पर मेरी साँसें
भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें।
"गा तू !
यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग।
किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,
रस-विद,
तू गा :
मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा
स्मृति का
श्रुति का --
तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !
" हाँ मुझे स्मरण है :
बदली -- कौंध -- पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट।
घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना।
चौंके खग-शावक की चिहुँक।
शिलाओं को दुलारते वन-झरने के
द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।
कुहरें में छन कर आती
पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।
गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।
कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :
ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते
मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।
भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।
कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।
पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।
चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट
जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।
झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में
संसृति की साँय-साँय।
"हाँ मुझे स्मरण है :
दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़
हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।
घरघराहट चढ़ती बहिया की।
रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़।
झंझा की फुफकार, तप्त,
पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।
ओले की कर्री चपत।
जमे पाले-ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।
ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना।
हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।
घाटियों में भरती
गिरती चट्टानों की गूंज --
काँपती मन्द्र -- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी,
धीरे-धीरे नीरव।
"मुझे स्मरण है
हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर
बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :
गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।
कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित
जल-पंछी की चाप।
थाप दादुर की चकित छलांगों की।
पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।