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"रौशनी के फ़रिश्ते / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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+ | गली के कोने से हाथ अपने हिला रहा है | ||
+ | कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...! | ||
+ | फ़रिश्ते निकले हैं रौशनी के | ||
+ | हरेक रस्ता चमक रहा है | ||
+ | ये वक़्त वो है | ||
+ | ज़मीं का हर ज़र्रा | ||
+ | माँ के दिल-सा धड़क रहा है | ||
− | + | पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा | |
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बच्चे स्कूल जा रहा हैं...! | बच्चे स्कूल जा रहा हैं...! | ||
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19:21, 2 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
हुआ सवेरा
ज़मीन पर फिर अदब से आकाश
अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...
नदी में स्नान करके सूरज
सुनहरी मलमल की पगड़ी बाँधे
सड़क किनारे
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...
हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में
दुआओ के गीत गा रही हैं
महकते फूलों की लोरियाँ
सोते रास्ते को जगा रही हैं
घनेरा पीपल,
गली के कोने से हाथ अपने हिला रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...!
फ़रिश्ते निकले हैं रौशनी के
हरेक रस्ता चमक रहा है
ये वक़्त वो है
ज़मीं का हर ज़र्रा
माँ के दिल-सा धड़क रहा है
पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा
कबूतरों को उड़ा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
बच्चे स्कूल जा रहा हैं...!