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"चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ? / रवीन्द्र प्रभात" के अवतरणों में अंतर

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मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
 
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राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?
 
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रोज आती है खबर अखवार में ,
 
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लूट, हत्या , खौफ , कत्लेआम क्यों ?
  
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रामसेतु है जुडा जब आस्था से ,  
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माँगते फिर भी अरे प्रमाण क्यों ?
 
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सभ्यता की भीत को तुम धाहकर ,
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सभ्यता की भीत को तुम ढाहकर,
 
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कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?
 
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जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,
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दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?
 
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बोलते हम हो गए होते दफ़न ,  
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चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?
 
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कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,  
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अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
 
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जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
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कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?
 
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17:23, 5 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?


रोज आती है खबर अखवार में ,
लूट, हत्या , खौफ , कत्लेआम क्यों ?


रामसेतु है जुडा जब आस्था से ,
माँगते फिर भी अरे प्रमाण क्यों ?


सभ्यता की भीत को तुम ढाहकर,
कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?

 
जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों -अमा,
दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?


बोलते हम हो गए होते दफ़न ,
चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?

 
कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?


जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?