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"अपनी खिड़की से / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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नीला निरभ्र हो सके;
 
नीला निरभ्र हो सके;
  

01:10, 8 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

मैं अपनी खिड़की से पुकारना चाहता हूँ
कि सामने के चर्च में
प्रार्थनाओं और दीपशिखाओं के बीच
ईश्वर हो सके;
कि सामने के वृक्षों पर
हरियाली और धूप हो सके;
कि आकाश अपनी धूमिलता छोड़कर
नीला निरभ्र हो सके;

मैं पुकारना चाहता हूँ
कि दरवाज़ा खुले
अन्दर आए रोशनी;
कि मेरी पुकार
प्रार्थना बनकर टिक सके;
फूल बनकर खिल सके।
आँसू बनकर झर सके।