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"पाखण्ड-व्रत-कथा / कात्यायनी" के अवतरणों में अंतर
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कविता में यह दन्द-फन्द
छल-छन्द, गन्द-भरभण्ड।
चमचा-कलछुल-अल्टा-पल्टा
जीवन से जयचन्द... ...
आलोचक
ज्यों परमानन्द, आनन्द-कन्द-मतिमन्द... ...
घट-घट में व्यापि डकार
हे खण्ड-खण्ड पाखण्ड
जय हो... जय हो... जय हो...
जय-जय-जय-जय-जय हो...
पों ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ
रचनाकाल : अगस्त, 2000