"अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे/ ज़ौक़" के अवतरणों में अंतर
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पर मेरे ज़ख्म नहीं ऐसे कि भर जायेंगे | पर मेरे ज़ख्म नहीं ऐसे कि भर जायेंगे | ||
− | पहुँचेंगे | + | पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक हम क्योंकर |
पहले जब तक न दो-आलम<ref>लोक-परलोक</ref> से गुज़र जायेंगे | पहले जब तक न दो-आलम<ref>लोक-परलोक</ref> से गुज़र जायेंगे | ||
आग दोजख़ की भी हो आयेगी पानी-पानी | आग दोजख़ की भी हो आयेगी पानी-पानी | ||
− | जब ये आसी<ref>पाप करने वाला</ref> | + | जब ये आसी<ref>पाप करने वाला</ref> अरक़-ए-शर्म<ref>शर्म का पसीना</ref> से तर जायेंगे |
हम नहीं वह जो करें ख़ून का दावा तुझपर | हम नहीं वह जो करें ख़ून का दावा तुझपर |
09:42, 24 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे
मर गये पर न लगा जी तो किधर जायेंगे
सामने-चश्मे-गुहरबार<ref>मोती के समान आँसू बहाने वाली आँखें</ref> के, कह दो, दरिया
चढ़ के अगर आये तो नज़रों से उतर जायेंगे
ख़ाली ऐ चारागरों<ref>चिकित्सकों</ref> होंगे बहुत मरहमदान
पर मेरे ज़ख्म नहीं ऐसे कि भर जायेंगे
पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक हम क्योंकर
पहले जब तक न दो-आलम<ref>लोक-परलोक</ref> से गुज़र जायेंगे
आग दोजख़ की भी हो आयेगी पानी-पानी
जब ये आसी<ref>पाप करने वाला</ref> अरक़-ए-शर्म<ref>शर्म का पसीना</ref> से तर जायेंगे
हम नहीं वह जो करें ख़ून का दावा तुझपर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जायेंगे
रुख़े-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहरो-मह<ref>सूरज और चन्द्रमा</ref> नज़रों से यारों के उतर जायेंगे
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उनको मैख़ाने में ले लाओ, सँवर जायेंगे