भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सँपेरा और भीड़ / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=साथ चलते हुए / वि…)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:26, 4 मार्च 2010 के समय का अवतरण

साँप निकलता है पिटारी से धीरे-धीरे
नेवले को देखते ही चौकन्ना हो जाता है
भय और क्रोध से काँपता नेवला
साँप पर झपटता है
साँप तेज़ी से फन मारते हुए
नेवले को कमर से लपेट लेता है
नेवला छटपटाता है
और साँप के मस्तक पर दाँत गड़ा देता है
दोनों एक दूसरे से गुँथे
देर तक जूझते-छटपटाते हैं
सँपेरा अपनी भाषा में बोलता रहता है
फुटपाथ की भीड़ तालियाँ बजाकर हँसती हैं
और हँसती रहती है।