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"सलाह / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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16:34, 4 मार्च 2010 के समय का अवतरण

आहिस्ता बोलिए
कोई सुन लेगा

कुछ लोग दुखी हैं कि बाक़ी लोग ज़िन्दा हैं

घोड़े जो खड़ी फ़सलें रौंदते हुए निकल गए थे
फिर लौट रहे हैं

हवा धीरे-धीरे बिखेरती जा रही है राख
राख के ढेर में छिपी हुई आग

अफ़वाहों से बचिए

कुछ लोगों का ख़याल है
यह आबादी हिंस्र पशुओं में तब्दील होने वाली है

आप हँसे, आपका अधिकार है
मगर इस तेज़ बारिश में बाहर न निकलें
यह मेरी सलाह है।