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"निर्वाण षडकम / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर

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'''मधुराष्टकं'''
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निर्वाण षडकम
'''श्री श्री वल्लभाचार्य द्वारा विरचित'''
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श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित.
  
अधर, वदन नयना अति मधुरा, स्मित मधुर, हृदय अति मधुरा
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मैं मन, बुद्धि, न चित्त अहंता, न मैं धरनि न व्योम अनंता.
चाल मधुरसब कुछ मधु मधुराहे मधुराधिपते! मधु मधुरा
+
मैं जिव्हा ना, श्रोत, न वयनान ही नासिका ना मैं नयना .
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मैं ना अनिलन अनल  सरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा .
 +
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं  शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥१॥
  
चरित मधुर, वचनं अति मधुराभेष मधुरवलितं अति मधुरा
+
न गतिशील, न प्राण आधारा, न मैं वायु पांच प्रकारा.
चाल मधुर अतिभ्रमण भी मधुराहे मधुराधिपते! मधु मधुरा
+
सप्त धातु , पद, पाणि न संगाअन्तरंग न ही  पाँचों अंगा.
 +
पंचकोष ना वाणी रूपा, मैं तो ब्रह्म रूपतदरूपा
 +
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा,  मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥२॥
  
मधुरं वेणु चरण रज मधुरा, पाद पाणि दोनों अति मधुरा
+
ना मैं राग, न द्वेष, न नेहाना मैं लोभ, मोह, मन मोहा.
मित्र मधुर मधुनृत्यं मधुरा,   हे मधुराधिपते!  मधु मधुरा
+
मद-मत्सर ना अहम् विकारा, ना मैं, ना मेरो ममकारा
 +
काम, धर्म, धन मोक्ष न रूपा,  मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा,
 +
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा,  मैं शिव-रूपा ॥३॥
  
गायन मधुर, पीताम्बर मधुरा,  भोजन मधुरमशयनं मधुरा
+
ना मैं पुण्य न पाप न कोई, ना मैं सुख-दुःख जड़ता जोई.
रूप मधुरतमतिलकं मधुराहे मधुराधिपते!  मधु  मधुरा
+
ना मैं तीर्थ, मन्त्र, श्रुति, यज्ञाः, ब्रह्म लीन मैं ब्रह्म की प्रज्ञा.
 +
भोक्ता,  भोजन, भोज्य न रूपामैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
 +
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपामैं शिव-रूपा,मैं शिव रूपा ॥४॥
  
करम मधुरतम, तारण मधुराहरण, रमण दोनों अति मधुरा
+
ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता.
परम शक्तिमय मधुरम मधुराहे मधुराधिपते! मधु मधुरा
+
मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता.
 +
ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपामैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
 +
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा,  मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥५॥
  
कुसुम माल, गुंजा अति मधुरायमुना मधुरा, लहरें मधुरा
+
निर्विकल्प आकार विहीनामुक्ति, बंध- बंधन सों हीना.
यमुना जल, जल कमल भी मधुरा, हे मधुराधिपते!  मधु मधुरा
+
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी.
 
+
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपामैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
मधुर गोपियाँलीला मधुरा,  मिलन मधुर भोजन अति मधुरा
+
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपामैं शिव-रूपामैं शिव-रूपा ॥६॥
हर्ष मधुरतमशिष्टं मधुरा,   हे मधुराधिपते!  मधु मधुरा
+
 
+
ग्वाले मधुरम, गायें मधुरा,  अंकुश मधुरम,  सृष्टिम  मधुरा
+
दलितं मधुरा, फलितं मधुरा,  हे मधुराधिपते! मधु मधुरा
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16:30, 16 मार्च 2010 का अवतरण


निर्वाण षडकम
श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित.

मैं मन, बुद्धि, न चित्त अहंता, न मैं धरनि न व्योम अनंता.
मैं जिव्हा ना, श्रोत, न वयना, न ही नासिका ना मैं नयना .
मैं ना अनिल, न अनल सरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा .
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥१॥

न गतिशील, न प्राण आधारा, न मैं वायु पांच प्रकारा.
सप्त धातु , पद, पाणि न संगा, अन्तरंग न ही पाँचों अंगा.
पंचकोष ना , वाणी रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥२॥

ना मैं राग, न द्वेष, न नेहा, ना मैं लोभ, मोह, मन मोहा.
मद-मत्सर ना अहम् विकारा, ना मैं, ना मेरो ममकारा
काम, धर्म, धन मोक्ष न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा,
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥३॥

ना मैं पुण्य न पाप न कोई, ना मैं सुख-दुःख जड़ता जोई.
ना मैं तीर्थ, मन्त्र, श्रुति, यज्ञाः, ब्रह्म लीन मैं ब्रह्म की प्रज्ञा.
भोक्ता, भोजन, भोज्य न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा,, मैं शिव रूपा ॥४॥

ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता.
मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता.
ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥५॥

निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना.
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी.
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥६॥