"निर्वाण षडकम / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर
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− | + | श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित. | |
− | + | मैं मन, बुद्धि, न चित्त अहंता, न मैं धरनि न व्योम अनंता. | |
− | + | मैं जिव्हा ना, श्रोत, न वयना, न ही नासिका ना मैं नयना . | |
+ | मैं ना अनिल, न अनल सरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा . | ||
+ | चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥१॥ | ||
− | + | न गतिशील, न प्राण आधारा, न मैं वायु पांच प्रकारा. | |
− | + | सप्त धातु , पद, पाणि न संगा, अन्तरंग न ही पाँचों अंगा. | |
+ | पंचकोष ना , वाणी रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा | ||
+ | चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥२॥ | ||
− | + | ना मैं राग, न द्वेष, न नेहा, ना मैं लोभ, मोह, मन मोहा. | |
− | + | मद-मत्सर ना अहम् विकारा, ना मैं, ना मेरो ममकारा | |
+ | काम, धर्म, धन मोक्ष न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा, | ||
+ | चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥३॥ | ||
− | + | ना मैं पुण्य न पाप न कोई, ना मैं सुख-दुःख जड़ता जोई. | |
− | रूप | + | ना मैं तीर्थ, मन्त्र, श्रुति, यज्ञाः, ब्रह्म लीन मैं ब्रह्म की प्रज्ञा. |
+ | भोक्ता, भोजन, भोज्य न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा. | ||
+ | चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा,, मैं शिव रूपा ॥४॥ | ||
− | + | ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता. | |
− | + | मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता. | |
+ | ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा. | ||
+ | चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥५॥ | ||
− | + | निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना. | |
− | + | मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी. | |
− | + | व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा. | |
− | + | चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥६॥ | |
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16:30, 16 मार्च 2010 का अवतरण
ॐ
निर्वाण षडकम
श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित.
मैं मन, बुद्धि, न चित्त अहंता, न मैं धरनि न व्योम अनंता.
मैं जिव्हा ना, श्रोत, न वयना, न ही नासिका ना मैं नयना .
मैं ना अनिल, न अनल सरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा .
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥१॥
न गतिशील, न प्राण आधारा, न मैं वायु पांच प्रकारा.
सप्त धातु , पद, पाणि न संगा, अन्तरंग न ही पाँचों अंगा.
पंचकोष ना , वाणी रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥२॥
ना मैं राग, न द्वेष, न नेहा, ना मैं लोभ, मोह, मन मोहा.
मद-मत्सर ना अहम् विकारा, ना मैं, ना मेरो ममकारा
काम, धर्म, धन मोक्ष न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा,
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥३॥
ना मैं पुण्य न पाप न कोई, ना मैं सुख-दुःख जड़ता जोई.
ना मैं तीर्थ, मन्त्र, श्रुति, यज्ञाः, ब्रह्म लीन मैं ब्रह्म की प्रज्ञा.
भोक्ता, भोजन, भोज्य न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा,, मैं शिव रूपा ॥४॥
ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता.
मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता.
ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥५॥
निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना.
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी.
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥६॥