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प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो ।<br>
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निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना<br>
समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो ॥<br>
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मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी<br>
एक जीव एक ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो ।<br>
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व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा<br>
अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो ॥
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चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा<br>
 
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कविता कोश में [[सूरदास]]
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कविता कोश में [[मृदुल कीर्ति]]
 
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11:50, 29 मार्च 2010 का अवतरण

Butterfly-orange-48x48.png  एक काव्य मोती

निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा

कविता कोश में मृदुल कीर्ति