भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बेसुतूँ आसमान है मेरा / जयंत परमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयंत परमार |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> बेसुतूँ आसमान ह…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:05, 11 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

बेसुतूँ आसमान है मेरा
सिर्फ़ वहम-ओ-गुमान है मेरा

एक दिन मैं भी जगमगाऊँगा
इक सितारे पे ध्यान है मेरा

यूँ तो कुछ भी नहीं मेरे बस में
और सारा जहान है मेरा

वक़्त की लहर दफ़्न कर देगी
रेत पर जो निशान है मेरा

लफ़्ज़ में ढूँढ़ता हूँ साया-ए-गुल
ये जुनूँ इम्तहान है मेरा