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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधव शुक्ल |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <Poem> जिगर संग कर लो इधर …) |
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16:50, 29 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
जिगर संग कर लो इधर आने वालो, नहीं पड़े घर में बच्चों को पालो।
अगर दिल में ज़ख़्म कीनः हो राम हो, तो कुर्बान कर सब कुछ धूनी रमा लो।।
अगर कान सुनते हों, आँखें खुली हों, तो तुम भी ये खद्दर की कफ़नी रँगा लो।
न डर जेल का हो, न फाँसी का ग़म हो, मुसीबत जो आए ख़ुशी से बुला लो।।
मगर शर्त ये दिल में गुस्सा न आए, ये आने से पहले ज़रा आजमा लो।
स्वराज ऐसी शै है नहीं जिसको 'माधो', पड़ी राह में हो ख़ुशी से उठा लो।।