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01:51, 11 मई 2010 के समय का अवतरण

आइने के सामने
आइना रखो तो
बनते हैं अनंत प्रतिबिंब।

हम सब यह अच्छे से जानते हैं
तभी तो कभी ख़ुद को
ख़ुद के सामने नहीं रखते।