"याद की प्रतीक्षा / राकेश खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
छो |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
चेतना, अवचेतना के सिन्धु भी मैने खंगाले<br> | चेतना, अवचेतना के सिन्धु भी मैने खंगाले<br> | ||
आईने पर जो जमी उस गर्द को कण कण बुहारा<br> | आईने पर जो जमी उस गर्द को कण कण बुहारा<br> | ||
− | सब हटाये गर्भ- | + | सब हटाये गर्भ-गृह में जम गये थे जो भी जाले<br><br> |
तीर पर भागीरथी के, आंजुरि में नीर भर कर<br> | तीर पर भागीरथी के, आंजुरि में नीर भर कर<br> | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
एक चितकबरा है, दूजा इन्द्रधनु के रंग वाला<br> | एक चितकबरा है, दूजा इन्द्रधनु के रंग वाला<br> | ||
जिन परों को डायरी में है रखा मैने संभाला<br> | जिन परों को डायरी में है रखा मैने संभाला<br> | ||
− | + | है उन्हें ये आस कोई उंगलियों का स्पर्श दे दे<br> | |
तो है संभव देख पायें फिर किसी दिन का उजाला<br><br> | तो है संभव देख पायें फिर किसी दिन का उजाला<br><br> | ||
उत्तरों की माल मुझको प्रश्न से पहले मिली है<br> | उत्तरों की माल मुझको प्रश्न से पहले मिली है<br> | ||
फिर न जाने किसलिये देते परीक्षा डर रहा हूँ<br><br> | फिर न जाने किसलिये देते परीक्षा डर रहा हूँ<br><br> |
00:27, 27 फ़रवरी 2007 का अवतरण
रचनाकार: राकेश खंडेलवाल
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
धुंध में डूबी हुई एकाकियत बोझिल हुई है
मैं किसी की याद की पल पल प्रतीक्षा कर रहा हूँ
मानसी गहराईयों में अनगिनत हैं जाल डाले
चेतना, अवचेतना के सिन्धु भी मैने खंगाले
आईने पर जो जमी उस गर्द को कण कण बुहारा
सब हटाये गर्भ-गृह में जम गये थे जो भी जाले
तीर पर भागीरथी के, आंजुरि में नीर भर कर
जो उठाईं थीं शपथ, उनकी समीक्षा कर रहा हूँ
खोल कर बैठा पुरानी चित्र की अपनी पिटारी
हाथ में थामे हुए हूँ मैं हरी वह इक सुपारी
तोड़ने सौगंध का बाँधा हुआ हर सिलसिला जो
पीठ के पीछे उठा कर हाथ थी तुमने उछारी
कोई भी सन्मुख नहीं है पात्र, फिर भी रोज ही मैं
कल्पना की गोद में कोई सुदीक्षा भर रहा हूँ
एक चितकबरा है, दूजा इन्द्रधनु के रंग वाला
जिन परों को डायरी में है रखा मैने संभाला
है उन्हें ये आस कोई उंगलियों का स्पर्श दे दे
तो है संभव देख पायें फिर किसी दिन का उजाला
उत्तरों की माल मुझको प्रश्न से पहले मिली है
फिर न जाने किसलिये देते परीक्षा डर रहा हूँ