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02:49, 13 मई 2010 के समय का अवतरण
एक छुपा हुआ ऐलान है इसकी ठनक में
ख़तरे घर में नहीं घर से बाहर हैं
और बुद्धिमानी इसी में है कि जहाँ ज़रूरी है
वहीं ठीक है ख़तरों से खेलना
नियमों की किताब लिये यह हर जगह साथ रहता है
चिकनी-चौड़ी सड़क हो या ऊबड़-खाबड़ पगडंडी
छोटा-मोटा कारखाना हो या विशाल संयंत्र
युद्ध का मैदान हो या क्रिकेट की पिच
हर जगह अपनी उपस्थिति से मौत को डकारता है
आकस्मिक मृत्यु से बचाव का यह उपाय
जिस किसी के मन में पहली बार आया होगा
अपनी हथेलियों की शक्ल में इसे ढाला होगा उसने
धातु ने अपना वर्चस्व सिद्ध किया होगा हड्डियों पर
लोहे ने हैलमेट का रूप लिया होगा
कारखाने में जन्म लेने से पहले
मस्तिष्क में जन्मी होगी इसकी आकृति
फिर आया होगा यह अपने जन्मदाता की रक्षा के लिए
मनुष्य का असुरक्षा-बोध है इसका आविष्कारक
यह आक्रमण से पूर्व बचाव का पक्षघर है
गजब का आत्मविश्वास पैदा करता है यह
अपने धारणकर्ता के मन में
जरा सी अति होते ही जिसके
अहंकार में बदल जाने में देर नहीं लगती
वर्दी की शह पर यह कभी अपने खेल दिखाता है
रक्षक के बिम्ब में पैंतरा बदलकर हत्यारा बन जाता है
जाने कितने रूप कितने रंग कितने नाम हैं इसके
फिर भी अपने स्थायी स्वभाव में यह
बच्चों के लिए पिता के सकुशल घर लौटने का भरोसा है
कारखाने के मालिक के लिए अधिक उत्पादन की गारंटी
स्त्रियों के लिए उनके सुहाग का रक्षक
बावजूद इसके किसी बेकार बुजुर्ग की तरह
घर के किसी कोने में यूँ ही पड़ा हुआ
बाजदफा आत्मा पर गुनाह के बोझ की मानिंद
शरीर पर महसूस होता है
भूलकर घर लौटने वाली वस्तुओं की सूची में यह शामिल
मनुष्य की पहचान छुपा लेने में माहिर है
गंजों की चाँद ढाँककर हर किसी को
अंतरिक्ष यात्री बनने का भ्रम देता हुआ
सांसारिक भय से सामना करने का दर्शन है यह
इस पर जमती हुई धूल में
वक़्त अपनी बेरोज़गारी के दिनों का हिसाब लिखता है
पल-पल नष्ट होते संसार में
आत्मरक्षा का मौलिक विचार
सदैव बचा रहेगा अपनी बदलती हुई शक्ल में
जब यह शीश नहीं होगा तब भी बचा रहेगा हैलमेट
अपने भीतर अंधेरे में एक चेहरा छुपाए
देखता रहेगा जीने की आपा-धापी में मनुष्य की भागदौड।