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मैं चीखता हूं बिनआवाजचीख़ता हूँ बिनआवाज़
नहीं दीखता डॉक्‍टर का चेहरा
नर्स की आकृति नजर नज़र नहीं आती
सुनाई तक नहीं देता कुछ
भूलने लगता लगतीं सबसे प्रिय कविता की पंक्तियांपंक्तियाँ
जद्दोजहद के बावजूद याद नहीं आती भरोसे की किताब
तैरती है ऊपर कोई हिंस्‍त्र छाया
मैं टटोलना चाहता हूं खुद हूँ ख़ुद के होने कोगिरता है अंधेरे अँधेरे में मेरा दाहिना हाथ
थाम लिया जाता है अधबीच जो
मैं इस थामने को 15 जून 1982 से जानता हूं.हूँ।</poem>
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