भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़रूरत / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> घर से बाहर तुमको ही न…)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:11, 20 मई 2010 के समय का अवतरण

घर से बाहर
तुमको ही नहीं
सुनी सड़क भी ढूंढता हूँ
ताकि तुमसे बात कर सकूं

अक्सर वो तेज़ गाड़ियों की आवाज़
तोड़ देती है
सपना
मेरे सामने से गुज़रकर

जंगल जा रहा हूँ
डरना मत
वहां शेर नहीं होते
कुछ ऊँची गगनचुम्बी
शीशे की इमारतों
में शोर और शराबे
का जंगल

यहाँ तुम याद नहीं आती
न ही हिम्मत होती है
सूनी सड़क ढूढने की
और ज़रुरत भी
क्या है

सामने बोर्ड पर लिखा है
“ओनली कपल्स अलाउड”....