भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मंदिर / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> घंटियाँ कभी मेरे मन म…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:15, 20 मई 2010 के समय का अवतरण
घंटियाँ
कभी
मेरे मन में तो
नहीं
गूंजी !
न ही कभी
आत्मा में श्रद्धा
उपजी !
कभी पैर भी
मदहोश
हो कर चुपचाप
यहाँ तक
नहीं आये
कभी ना तो शीश
नतमस्तक हुआ
न ही मैंने
प्रेममय अश्रुपूरित
सुमन चढ़ाए
अब शायद समय
आया है
तुम भी पहचान लो ,
मैं भी जान लूं
ठीक नहीं है
कि किसी के कहने भर से
ये मंदिर है
ऐसा मान लूं .....