भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुष्मिता / दिनकर कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:35, 22 मई 2010 के समय का अवतरण

देखा है तुम्हारे माँसल शरीर को और शरीर के अंगों को
तुम्हारी तराशी हुई हँसी को और दर्शकों की ख़ुशी को
सुष्मिता तुम्हें मनीला में मुँह छिपाकर अभिनय करते देखा है
तुम्हारा सपना पूरा हुआ सुष्मिता और इस देश का भी
सपना पूरा हो गया जो भूखा सोता है सपनों में जीता है
 
अब तुम सपनों का वितरण कर सकोगी सुष्मिता
जो राधा बचपन में ब्याही गई किसी वृद्घ के साथ
जो सीता देख नहीं पाई कभी स्कूल पढ़ नहीं पाई ककहरा
जो गीता गाँव से पहुँच गई किसी शहरी कोठे पर
उन सभी राधाओं सीताओं गीताओं से अलग होकर
 
एक गर्व का वितरण कर रही हो तुम सुष्मिता
तुम चाहती हो कि अपने सड़े हुए अंगों के साथ
तुम्हारा यह देश दर्द को भूलकर मुस्कराए और
अघाए हुए पश्चिम की तरह तुम्हारे अंगों को देखे

अब हम तुम्हें अलग-अलग रूपों में देखेंगे सुष्मिता
तुम्हारी देह एक ही होगी पोशाकें अलग-अलग होंगी
बाज़ार अलग-अलग होंगे व्यापारी अलग-अलग होंगे

हाँ सुष्मिता कुपोषण का शिकार है तुम्हारा देश
जहाँ बच्ची सीधे बूढ़ी बन जाती है आता नहीं है
उनके जीवन में वसंत आता नहीं उल्लास
तुम्हारे सौंदर्य से हम आतंकित हैं सुष्मिता

यह पश्चिमी उपकरण में गढा गया सौंदर्य है
पश्चिम का पैमाना है पश्चिम की आँखें हैं
ख़ुश हुआ कोलंबस ख़ुश हुआ आख़िर वह
पहुँच ही गया भारतवर्ष