भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कत‍आत / नक़्श लायलपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नक़्श लायलपुरी }} {{KKCatKataa‎}} <poem> '''1. नक़्श से मिलके तु…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:03, 23 मई 2010 के समय का अवतरण

1.

नक़्श से मिलके तुमको चलेगा पता
जुर्म है किस क़दर सादगी दोस्तो

2.

कई बार चाँद चमके तेरी नर्म आहटों के
कई बार जगमगाए दरो-बाम बेख़ुदी में

3.

हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमाँ होकर
क्यों न इंसाँ से मुहब्बत करें इंसां होकर

4.
 
ये अंजुमन, ये क़हक़हे, ये महवशों की भीड़
फिर भी उदास, फिर भी अकेली है ज़िंदगी