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"कतआत / नक़्श लायलपुरी" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नक़्श लायलपुरी }} {{KKCatKataa}} <poem> '''1. नक़्श से मिलके तु…) |
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1.
नक़्श से मिलके तुमको चलेगा पता
जुर्म है किस क़दर सादगी दोस्तो
2.
कई बार चाँद चमके तेरी नर्म आहटों के
कई बार जगमगाए दरो-बाम बेख़ुदी में
3.
हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमाँ होकर
क्यों न इंसाँ से मुहब्बत करें इंसां होकर
4.
ये अंजुमन, ये क़हक़हे, ये महवशों की भीड़
फिर भी उदास, फिर भी अकेली है ज़िंदगी