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"ये शरद की चाँदनी / हेमन्त श्रीमाल" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त श्रीमाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> शोख चंचल चुल…) |
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13:23, 27 मई 2010 का अवतरण
शोख चंचल चुलबुली है, ये शरद की चाँदनी
इस कदर मादक नहीं था मरमरी कोमल बदन
उम्र में शामिल हुआ है एक अल्हड़ बाँकपन
रूप में ख़ुद आ घुली है, ये शरद की चाँदनी
स्वप्न बुनती जा रही है जो मिलन के हर जगह
सेज पर फिर बिछ रही है एक चादर की तरह
दूधिया साबुन धुली है, ये शरद की चाँदनी
संगमरमर-सी ऋचा का कामभेदी व्याकरण
और स्वर्णिम ओढ़नी का पारदर्शी आवरण
जान लेने पर तुली है, ये शरद की चाँदनी