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22:30, 27 मई 2010 के समय का अवतरण

 
अयोध्या अयोध्या थी
वह थी क्योंकि वहाँ एक नदी बहती थी
वह थी क्योंकि वहाँ लोग रहते थे
वह थी क्योंकि वहाँ सड़कें और गलियाँ थीं
वह थी क्योंकि वहाँ मंदिर में बजती घंटियाँ थीं
और मस्जिद से उठती अजान थी

अयोध्या अयोध्या थी
रामचन्द्र जी के जन्म से पहले भी वह थी
रामचन्द्र जी हमीद मियाँ की बनाई खड़ाऊँ पहने
करते थे परिक्रमा अयोध्या की
सो जाती थी जब अयोध्या रात में
सोई हुई अयोध्या को चुपचाप देखते थे रामचन्द्रजी
बचपन की स्मृतियाँ ढूँढ़ते कभी ख़ुश कभी उदास
हो जाया करते थे रामचन्द्र जी

अयोध्या अब भी अयोध्या है
अपनी क्षत-विक्षत देह के साथ
अयोध्या अब भी अयोध्या है
पूर्वजों के सामूहिक विलाप के साथ

हमीद मियाँ चले गए हैं देखते मुड़-मुड़कर
जला घर
चले गए हैं रामचन्द्र जी भी मलबे की मिट्टी
खूँट में उड़स


                        
रचनाकाल : 1993