भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गायक / अलेक्सान्दर पूश्किन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
 
बुझी हुई आँखों में उसकी अब ख़त्म हो चुकी आस
 
बुझी हुई आँखों में उसकी अब ख़त्म हो चुकी आस
 
साँस भरी दुख से क्या कभी तुमने ?
 
साँस भरी दुख से क्या कभी तुमने ?
 +
 +
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
</poem>
 
</poem>

15:46, 5 जून 2010 का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अलेक्सान्दर ब्लोक  » संग्रह: यह आवाज़ कभी सुनी क्या तुमने
»  गायक

येकेतिरिना बाकूनिना के लिए

सुनी क्या तुमने जंगल से आती आवाज़ वो प्यारी
गीत प्रेम के, गीत रंज के, गाता है वह न्यारे
सुबह - सवेरे शान्त पड़े जब खेत और जंगल सारे
पड़ी सुनाई आवाज़ दुखभरी कान में हमारे
यह आवाज़ कभी सुनी क्या तुमने ?
 
मिले कभी क्या घुप्प अंधेरे जंगल में तुम उससे
गाए सदा जो बड़े रंज से अपने प्रेम के किस्से
बहे कभी क्या आँसू तुम्हारे मुस्कान कभी देखी क्या
भरी हुई हो जो वियोग में ऎसी दृष्टि लेखी क्या
मिले कभी क्या तुम उससे ?

साँस भरी क्या दुख से कभी आँखों की वीरानी देख
गीत वो गाए बड़े रंज से दे अपने दुख के संदेश
घूम रहा इस किशोर वय में जंगल में प्रेमी उदास
बुझी हुई आँखों में उसकी अब ख़त्म हो चुकी आस
साँस भरी दुख से क्या कभी तुमने ?

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय