भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अँधियाली घाटी में / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
::मानव-आत्मा का प्रकाश-कण
 
::मानव-आत्मा का प्रकाश-कण
 
::जग सहसा, ज्योतित कर देता
 
::जग सहसा, ज्योतित कर देता
::मानस के चिर गुह्य कुंज-बन!
+
::मानस के चिर गुह्य कुंज-वन!
  
 
'''रचनाकाल: मई’१९३५'''
 
'''रचनाकाल: मई’१९३५'''
 
</poem>
 
</poem>

13:22, 10 जून 2010 का अवतरण

अँधियाली घाटी में सहसा
हरित स्फुलिंग सदृश फूटा वह!
वह उड़ता दीपक निशीथ का,--
तारा-सा आकर टूटा वह!
जीवन के इस अन्धकार में
मानव-आत्मा का प्रकाश-कण
जग सहसा, ज्योतित कर देता
मानस के चिर गुह्य कुंज-वन!

रचनाकाल: मई’१९३५