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"गिलहरी / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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12:47, 11 जून 2010 के समय का अवतरण
खेत के
सबसे ऊँचे धोरे पर
बनी मचाण पर बैठी
रात के सन्नाटे में
कुतरती है नाखून गिलहरी
कान लगाए,
फूटे तो सही
किसी ओर से
माणस के मिठड़े बोल
सपने सजाए बैठी है
योग माया-सी गिलहरी ।