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"रावण / दीनदयाल शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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18:55, 13 जून 2010 का अवतरण

सालो-साल दशहरा आता
पुतला झट बन जाए।

बँधा हुआ रस्सी से रावण
खड़ा-खड़ा मुस्काए।
चाहे हो तो करे ख़ात्मा,
राम कहाँ से आए।

रूप राम का धरकर कोई,
अगनी बाण चलाए।
धू-धू करके राख हो गया,
नकली रावण हाय!

मिलकर खुशियाँ बाँटें सारे,
नाचें और नचाएँ।
अपने भीतर नहीं झाँकते,
खुद को राम कहाए।

सबके मन में बैठा रावण,
इसको कौन मिटाए।