भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस असंभव समय में / सुशीला पुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला पुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मेरी प्यास गहरे …)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:32, 23 जून 2010 के समय का अवतरण

मेरी प्यास
गहरे समंदर में उतर जाती है
जब कहते हो तुम
आओ!
आ जाओ पास

नभ का अनंत विस्तार लिए
मेरी निजता
दुबक जाती है
तुम्हारी गोद में
और कई-कई आँखों से
देखती हूँ तुम्हे
अनयन होकर

तुम्हारी लय पर
थिरकती हूँ मै
देह में विदेह होकर
और पोर-पोर पर
मुस्कराते हो तुम
नियम से बेनियम होकर

आदिम धुनों में
तुम्हारा अनहद नाद
बजता है मुझमे
और उठती है हिलोर
इस असंभव समय में ।