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"कथा / विष्णुचन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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22:36, 27 जून 2010 के समय का अवतरण
यह जो मन मार कर
पसरा है आकाश
यह शुरूआत नहीं है ।
यह जो डुबकियाँ लगाकर
बैठा है पत्थर
यह मायूसी नहीं है ।
यह जो अख़बारों में लगातार
लुप्त हो रही है सभ्यता
यह ढाई आखर नहीं है ।
यह जो मेरे भीतर छटपटा कर
खोजा करता है प्रेम
यह तुम्हारी रूपकथा नहीं है ।