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"उन्मुक्त / मीना चोपड़ा" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना चोपड़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> कलम ने उठकर चुपक…)
 
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12:00, 4 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

कलम ने उठकर
चुपके से कोरे काग़ज़ से कुछ कहा

और मैं स्याही बनकर बह चली
           मधुर स्वछ्न्द गीत गुनगुनाती,
                     उड़ते पत्तों की नसों में लहलहाती!

उल्लसित जोशीले से
ये चल पड़े हवाओं पर
अपनी कहानियाँ लिखने।

           सितारों की धूल
                      इन्हें सहलाती रही।

कलम मन ही मन
             मुस्कुराती रही
                       गीत गाती रही।