भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"केंचुआ / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
'''केंचुआ'''
 
'''केंचुआ'''
  
केंचुआ पैदाइशी अंधा नहीं होता  
+
केंचुआ  
वह भीरु होता है,
+
पैदाइशी अंधा नहीं होता  
 +
--वह भीरु होता है,
 
कुछ बेहतर कर गुजरने की चाह में
 
कुछ बेहतर कर गुजरने की चाह में
 
सिर टकरा-टकराकर  
 
सिर टकरा-टकराकर  
पंक्ति 20: पंक्ति 21:
 
एक उपजाऊ व्यवस्था का
 
एक उपजाऊ व्यवस्था का
  
क्या सचमुच केंचुआ बनने का
+
क्या सचमुच  
 +
केंचुआ बनने का
 
दमखम है हममें,
 
दमखम है हममें,
नि:संदेह केंचुआ बनने के लिए
+
नि:संदेह!
 +
केंचुआ बनने के लिए
 
हमें अपने भौतिक-अभौतिक अस्तित्त्व को  
 
हमें अपने भौतिक-अभौतिक अस्तित्त्व को  
 
खंगालना होगा,
 
खंगालना होगा,
खुद को एक परिशोधन कारखाना बनाना होगा.
+
खुद को  
 +
एक परिशोधन-शाला बनाना होगा.

17:42, 14 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

केंचुआ

केंचुआ
पैदाइशी अंधा नहीं होता
--वह भीरु होता है,
कुछ बेहतर कर गुजरने की चाह में
सिर टकरा-टकराकर
अपनी आँखें फोड़ देता है

केंचुआ भ्रष्टाचार नहीं करता
वह विष, कार्बन, रेत-रेह
सब निगलकर
जन्म देता है--
एक उपजाऊ व्यवस्था का

क्या सचमुच
केंचुआ बनने का
दमखम है हममें,
नि:संदेह!
केंचुआ बनने के लिए
हमें अपने भौतिक-अभौतिक अस्तित्त्व को
खंगालना होगा,
खुद को
एक परिशोधन-शाला बनाना होगा.