"मेरे गीत / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर
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मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है <br> | मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है <br> | ||
कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है <br><br> | कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है <br><br> | ||
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मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है <br> | मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है <br> | ||
− | मेरी फ़ितरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सानों से रग़्बत है <br><br> | + | मेरी फ़ितरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सानों से रग़्बत है <br> |
+ | मेरी दुनिया में कुछ वक्त नहीं है रक़्स-ओ-नग़्में की <br> | ||
+ | मेरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है <br> | ||
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मगर ऐ काश! देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को <br> | मगर ऐ काश! देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को <br> | ||
− | मैं जब तारों पे नज़रें गाड़कर आसूँ बहाता हूँ <br> | + | मैं जब तारों पे नज़रें गाड़कर आसूँ बहाता हूँ <br> |
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तसव्वुर बनके भूली वारदातें याद आती हैं <br> | तसव्वुर बनके भूली वारदातें याद आती हैं <br> | ||
− | तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिल्मिलाता हूँ <br> | + | तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिल्मिलाता हूँ <br> |
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कोई ख़्वाबों में ख़्वाबीदा उमंगों को जगाती है <br> | कोई ख़्वाबों में ख़्वाबीदा उमंगों को जगाती है <br> | ||
तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूँ <br><br> | तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूँ <br><br> | ||
− | मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के | + | मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़ारों से उल्फ़त है <br> |
− | मेरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता <br> | + | मेरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता <br> |
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मुझे इन्सानियत का दर्द भी बख़्शा है क़ुदरत ने <br> | मुझे इन्सानियत का दर्द भी बख़्शा है क़ुदरत ने <br> | ||
− | मेरा मक़सद फ़क़त शोला नवाई हो नहीं सकता <br><br> | + | मेरा मक़सद फ़क़त शोला नवाई हो नहीं सकता <br> |
+ | जवाँ हूँ मैं जवानी लग़्ज़िशों का एक तूफ़ाँ है <br> | ||
+ | मेरी बातों में रन्ग-ए-पारसाई हो नहीं सकता <br> | ||
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मेरे सरकश तरानों की हक़ीक़त है तो इतनी है <br> | मेरे सरकश तरानों की हक़ीक़त है तो इतनी है <br> |
17:30, 10 दिसम्बर 2007 का अवतरण
रचनाकार: साहिर लुधियानवी
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मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है
कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है
मेरी फ़ितरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सानों से रग़्बत है
मेरी दुनिया में कुछ वक्त नहीं है रक़्स-ओ-नग़्में की
मेरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है
मगर ऐ काश! देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को
मैं जब तारों पे नज़रें गाड़कर आसूँ बहाता हूँ
तसव्वुर बनके भूली वारदातें याद आती हैं
तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिल्मिलाता हूँ
कोई ख़्वाबों में ख़्वाबीदा उमंगों को जगाती है
तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूँ
मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़ारों से उल्फ़त है
मेरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता
मुझे इन्सानियत का दर्द भी बख़्शा है क़ुदरत ने
मेरा मक़सद फ़क़त शोला नवाई हो नहीं सकता
जवाँ हूँ मैं जवानी लग़्ज़िशों का एक तूफ़ाँ है
मेरी बातों में रन्ग-ए-पारसाई हो नहीं सकता
मेरे सरकश तरानों की हक़ीक़त है तो इतनी है
कि जब मैं देखता हूँ भूक के मारे किसानों को
ग़रीबों को, मुफ़लिसों को, बेकसों को, बेसहारों को
सिसकती नाज़नीनों को, तड़पते नौजवानों को
हुकूमत के तशद्दुद को, अमारत के तकब्बुर को
किसी के चिथड़ों को और शहन्शाही ख़ज़ानों को
तो दिल ताब-ए-निशात-ए-बज़्म-ए-इश्रत ला नहीं सकता
मैं चाहूँ भी तो ख़्वाब-आवार तराने गा नहीं सकता