भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कमरे का धुआँ / नचिकेता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नचिकेता }} {{KKCatNavgeet}} <poem> :सोचिए :किस दौर में शामिल हुए …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:10, 23 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
सोचिए
किस दौर में शामिल हुए
खिड़कियाँ खोलीं कि
आएगी हवा
छँटेगा इस बंद
कमरे का धुआँ
क्या खुलेपन से
मगर हासिल हुए
पच्छिमी गोलार्ध से
आकर सुबह
खोल देगी
हर अंधेरे की गिरह
मान यह
संघर्ष से गाफ़िल हुए
क्या न ख़ुशबू
बाँटने के नाम पर
है हरापन चूसने का
यह हुनर
जो बने रहबर
वही क़ातिल हुए।