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10:48, 3 अगस्त 2010 का अवतरण

घोंघे पर छा गया बसंत ।

अपने घर को उसने
कँलगी की तरह
माथे पर रखा,
अपने पैरों स
घोड़े की दुलकी वह चला...
फिर क्यों न लोग कहते-
वाह ! वाह !
वाह ! श्री घोंघाबसंत !