भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आदमी नहीं है (कविता) / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो () |
|
(कोई अंतर नहीं)
|
12:06, 31 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
बहुत नाम था मिट्टी का
मिट्टी भिगोई गई
थापी और पकाई गई
मिट्टी ईटं बनी
ईटं का बहुत नाम हुआ
लोग भूल गए मिटटी को।
ईंट से घर बना
घर का बहुत नाम हुआ
ईंट भुला दी गई
घर,
बहुत फैला घर
घर में आया आदमी
अब आदमी
बहुत बड़ा हो गया
आदमी का बहुत नाम है
आदमी के सामने
घर बिल्कुल गौंण है
लेकिन
भुली गई मिटटी
आज भी
घर के नीचे है
भूली गई ईंट
आज भी
घर की दीवारों में हैं
परन्तु
आदमी के भीतर
आदमी नहीं हैं।