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"काफ़ी नहीं तुम्हारा / शेरजंग गर्ग" के अवतरणों में अंतर
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17:21, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण
काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना
भैया बड़ा ज़रूरी दूकानदार होना
है वक़्त का तकाज़ा रौ में शुमार होना
मक्खन किशोर होना चमचा कुमार होना
सौजन्य का कदाचित तू मत शिकार होना
सब चाहते है वरना तुझ पर सवार होना
चुल्लू में डूबने का अब लद चुका ज़माना
उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना
लँगड़ा रही है भाषा, कितना अजब तमाशा
घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना