भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऐसा ही प्रण / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: शमशेर बहादुर सिंह Category:कविताएँ Category:्शमशेर बहादुर सिंह ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
रचनाकार: [[शमशेर बहादुर सिंह]] | रचनाकार: [[शमशेर बहादुर सिंह]] | ||
[[Category:कविताएँ]] | [[Category:कविताएँ]] | ||
− | [[Category: | + | [[Category:शमशेर बहादुर सिंह]] |
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ |
11:46, 24 मई 2007 का अवतरण
रचनाकार: शमशेर बहादुर सिंह
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
सानेट और त्रिलोचन : काठी दोनों की है
एक । कठिन प्रकार में बंधी सत्य सरलता ।
साधे गहरी सांस सहज ही...ऎसा लगता
जैसे पर्वत तोड़ रहा हो कोई निर्भय
सागर-तल में खड़ा अकेला; वज्र हृदयमय ।
नैसर्गिक स्वर में जब ऎसी गूढ़ अगमता
स्वयं बोलती हो जो युग की अवास्तविकता
को मानो ललकार रही हो, तब नि:संशय
अंतस्तल खिल-खिल जाता : चट्टानें भीतर
दुखती-सी कसमस जीवन की ।
-बढ़कर उन पर
सीधी चोट लगाऊं, उनको ढाऊं बरबस
डूबी हुई खान की निधियां अपनी सरबस !
लाऊं ऊपर ! अपने अंदर ऎसा ही प्रण
लिए हुए हैं शायद सानेट और त्रिलोचन ।
(रचनाकाल :1957)