भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"संग्राम / राजेन्द्र शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र शाह |संग्रह= }} Category: गुजराती भाषा {{KKCatKavit…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:47, 28 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
संग्राम देवासुर का देखता
सर्वत्र, अपने ह्रदय की समष्टि में;
तल्लीन प्रत्येक स्वकीय शक्ति में ,
हारे हुए शीर्ष पर विजय-सा सोहता ।
विश्राम कहाँ ? आहत रक्त बिन्दु से
अनेकों का उदभव जहाँ फिर-फिर
और आयुध में जहाँ दिन भी रात्रि
समान, जहाँ घोर गर्जन घोर सिंधु से
अलिप्त जो मैं रहूँ बोधिसत्व-सा
तो दुर्ग खुले सुखपूर्ण शून्य का ।
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति कनाटे