भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाँसुरी चली आओ / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (कुमार विश्वास / बाँसुरी चली आऒ moved to बाँसुरी चली आओ / कुमार विश्वास) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | |||
रचनाकार: [[कुमार विश्वास]] | रचनाकार: [[कुमार विश्वास]] | ||
− | |||
[[Category:कविताएँ]] | [[Category:कविताएँ]] | ||
− | |||
[[Category:कुमार विश्वास]] | [[Category:कुमार विश्वास]] | ||
− | |||
− | |||
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ | ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ | ||
− | + | तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा | |
− | + | ||
− | तुम अगर नही आई गीत गा न | + | |
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा | साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 12: | ||
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है | तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है | ||
− | बाँसुरी चली | + | बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है |
पंक्ति 27: | पंक्ति 20: | ||
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है | तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है | ||
− | रात की उदासी को | + | रात की उदासी को आँसुओ ने झेला है |
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है | कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है | ||
− | औषधि चली | + | औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है |
− | बाँसुरी चली | + | बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है |
− | तुम अलग हुई मुझसे साँस की | + | तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से |
− | भूख की दलीलों से वक्त की | + | भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से |
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है | दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 40: | ||
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है | कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है | ||
− | बाँसुरी चली | + | बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है |
14:43, 28 मई 2007 का अवतरण
रचनाकार: कुमार विश्वास
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को आँसुओ ने झेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है