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02:09, 3 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

पता नहीं कैसे राहत पहुँचाई है
अपनी अस्पष्टता से इस अवसाद ने ।
प्यार के अंधे तर्क ने
हमें सिखाया है ऊपर उठना तर्कों से ।

तुम्हारे हाथों में भूरे प्याले में
निराशा की आँखें सुबकती रहीं
हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी पीते रहे
प्रेम की द्वंद्वात्मकता के लिए ।


रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह