भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको चांदनी देगी / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | दिया बनकर वहीं से | + | {{KKRachna |
+ | |रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | नए घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो, | ||
+ | दिया बनकर वहीं से माँ हमेशा रोशनी देगी । | ||
− | ये सूखी घास अपने लान की काटो न तुम | + | ये सूखी घास अपने लान की काटो न तुम, भाई ! |
− | पिता की याद | + | पिता की याद आएगी तो ये फिर से नमी देगी । |
− | फरक लड़के | + | फरक लड़के औ’ लड़की में है बस महसूस करने का, |
− | वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको | + | वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको चाँदनी देगी । |
− | ये | + | ये माँ से भी अधिक उजली इसे मलबा न होने दो, |
− | ये गंगा है यही दुनिया को फिर से | + | ये गंगा है यही दुनिया को फिर से ज़िंदगी देगी ।। |
+ | </poem> |
12:14, 5 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
नए घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो,
दिया बनकर वहीं से माँ हमेशा रोशनी देगी ।
ये सूखी घास अपने लान की काटो न तुम, भाई !
पिता की याद आएगी तो ये फिर से नमी देगी ।
फरक लड़के औ’ लड़की में है बस महसूस करने का,
वो तुमको रोशनी देगा ये तुमको चाँदनी देगी ।
ये माँ से भी अधिक उजली इसे मलबा न होने दो,
ये गंगा है यही दुनिया को फिर से ज़िंदगी देगी ।।