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"प्यास / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर
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12:28, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
प्यास देह की बुझती
पर मिटती नहीं कभी
नहीं बुझने देतीं नदियाँ
बहती हैं जो मेरे इर्द गिर्द
चहचहाते परिन्दे
जो चहचहाट अपनी से
जगाते हैं मेरे भीतर उत्तेजना
नीर नदियों का छलकता
लहरों में तबदील होता
कभी आसूँओं में
कभी नटखट हँसी में बदलता
यह खिलखिलाती हँसी
यह उत्तेजना भरी
सिसकियों की आवाज़
पानी की लहरों का संगीत
फिर मेरे भीतर
प्यास जगा देता
मैं नदी के नीर से
घूँट भरता
प्यास बुझती
कुछ पल के लिए
लेकिन फिर जाग पड़ती
कुछ क्षणों के बाद
प्यास मिटती नहीं ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा