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22:21, 18 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
आयें दिन
जैसे भी आयें,
लायें दुख जैसे भी लायें।
वे सब मेरे पाहुन होंगे,
मैं उनका सत्कार करूँगा,
नवाचार से
उनका-अपना
लोकमुखी उद्धार करूँगा।
रचनाकाल: ०६-०७-१९७९