भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शंकाओं के घेरे में / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= पुरुषोत्तम 'यक़ीन' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> शंकाओं …)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:37, 21 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

शंकाओं के घेरे में
डूबा वक़्त अँधेरे में

आडम्बर की शहतीरें
घर में तेरे, घर में मेरे

शक-शुबहात बसे आकर
दिल के रिक्त बसरे में

उजियारों की बात करें
हम इन घने अँधेरे में

ढूंढें कोई चिंगारी
ठण्डी राख के घेरे में

मंज़र रंगीं सपनों का
होता काश चितेरे में

चिह्न निशा के अब भी 'यक़ीन'
क्यूँ बाक़ी है सवेरे में