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कैसे आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता,<br>
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कैसे आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता,<br>
 
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ।
 
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ।
 
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11:25, 28 जून 2008 का अवतरण

 एक काव्य मोती
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कैसे आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ।

कविता कोश में दुष्यंत कुमार