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रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ।<br>
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हो गई है पीर पर्वत—सी पिघलनी चाहिए<br>
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ॥ <br><br>
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इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए<br><br>
 
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कविता कोश में [[अहमद फ़राज़]]
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कविता कोश में [[दुष्यंत कुमार]]
 
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21:48, 31 अगस्त 2008 का अवतरण

 एक काव्य मोती
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हो गई है पीर पर्वत—सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

कविता कोश में दुष्यंत कुमार