भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिस दिन से आए / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक }} {{KKCatNavgeet‎}} <poem> जिस दिन से आए उस दिन स…)
(कोई अंतर नहीं)

20:33, 5 नवम्बर 2010 का अवतरण

      जिस दिन से आए
       उस दिन से
       घर में यहीं पड़े हैं
       दुख कितने लंगड़े हैं ?

पैसे,
ऐसे अलमारे से
फूल चुरा ले जायें बच्चे
जैसे फुलवारी से

       दंड नहीं दे पाता
       यद्यपि-
      रँगे हाथ पकड़े हैं ।

नाम नहीं लेते जाने का
घर की लिपी-पुती बैठक से
कम ले रहे तहखाने का
धक्के मार निकालूँ कैसे ?

       ये मुझसे तगड़े हैं ।