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"माँ / भाग १३ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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दौलत से मुहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
 
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बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था  
 
बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था  
 
  
 
जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ कपड़े थे मगर
 
जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ कपड़े थे मगर
 
 
धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा  
 
धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा  
 
  
 
कम से बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
 
कम से बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
 
 
ऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ  
 
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क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है
 
क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है
 
 
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है  
 
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है  
 
  
 
बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
 
बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
 
 
अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते  
 
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इन्हें फ़िरक़ा परस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
 
इन्हें फ़िरक़ा परस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
 
 
ज़मी से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं  
 
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सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
 
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
 
 
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता  
 
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बिछड़ते वक़्त भी चेहरा नहीं उतरता है
 
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यहाँ सरों से दुपट्टा नहीं उतरता है  
 
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कानों में कोई फूल भी हँस कर नहीं पहना
 
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उसने भी बिछड़ कर कभी ज़ेवर नहीं पहना
 
उसने भी बिछड़ कर कभी ज़ेवर नहीं पहना
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20:37, 14 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

दौलत से मुहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था

जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ कपड़े थे मगर
धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा

कम से बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ

क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है

बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते

इन्हें फ़िरक़ा परस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मी से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं

सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता

बिछड़ते वक़्त भी चेहरा नहीं उतरता है
यहाँ सरों से दुपट्टा नहीं उतरता है

कानों में कोई फूल भी हँस कर नहीं पहना
उसने भी बिछड़ कर कभी ज़ेवर नहीं पहना